साइकिल-मैन अन्ना चाय
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साइकिल-मैन अन्ना चाय
पता नहीं मेरा शहर कब सोता है? बहुत साल पहले, मै जब बोरीवली ऑफिस में काम करता था, तो कई बार ऐसे दौर होते थे कि कई रातें ऑफिस में गुजारनी पड़ती। अगर यह रोज़ रोज़ होने लगे तो शरीर भी जवाब देने लगता है। इसी तरह एक दिन तबियत ठीक नहीं लग रही थी। पर काम करते करते, रात हो गई। तक़रीबन रात के २ बजे मैंने एक दोस्त के घर जाकर थोड़ी देर नींद लेने का फ़ैसला किया। यह मेरे ऑफिस के ही बैचलर (अविवाहित) सहकर्मी थे। तो रात बेरात जाया जा सकता था।
मैंने अपना बैग उठाया और सुनसान रस्ते पर निकल पड़ा। गली में इक्का दुक्का कुत्तो के अलावा और कोई नहीं था। वो सब अपना अपना इलाका संभालने में लगे थे। चलते चलते मै बोरीवली नेशनल पार्क के गेट के पास आ गया। मुझे अशोक वन वसाहत की तरफ जाना था। हाइवे होने की वजह से यहाँ गाड़ियों की आवाजाही शुरू थी।
अचानक मैंने नेशनल पार्क के गेट के पास कुछ भीड़ देखी। रात के अढ़ाई बजे (२:३० ऍम) ४-५ लोग भी भीड़ होते है। मै थोड़ा सावधान हो गया। धीरे धीरे कदम बढ़ाते मै वहाँ पहुँचा। देखा की एक साँवला आदमी साईकिल पर कुछ रखकर वहाँ खड़े लोगों को कुछ दे रहा है। स्ट्रीट लाइट (रोड लैंप पोस्ट की रोशनी) में कुछ साफ़ नहीं था। मैंने सकुचाते हुए आगे बढ़ गया। पर अचानक एक खुशबू नाक में भर गयी। जानी पहचानी थी। अरे ये तो चाय है। आँखों में एक अजीब आशा की किरण आ गई। रात के अढ़ाई बजे चाय! वाह क्या बात है।
मै लौटा, पर अभी भी तसल्ली करना चाहता था। यह शहर हादसों का शहर है और हर वक्त सावधान होना जरुरी है। नजदीक पहुंचने पर देखा तो साइकिल-मैन, लंबा और दुबले-पतले पुरुष था, जिसके पास स्टील का एक छोटा कंटेनर था जो शायद चाय से भरी हुई साइकिल पर रखी थी। मैंने “एक चाय ” कहा और ऐसा प्रतीत किया मानो मै बरसो से यहाँ आ रहा हूँ।
प्लास्टिक के छोटे कप में गरमा गरम चाय मुँह में जाते ही, एक तसल्ली महसूस हुई। तब एहसास हुआ कि मै शरीर से ही नहीं मन से भी थक गया था। धीरे धीऱे चुस्की लेते हुए जिंदगी के बारे में सोचने लगा। कब तक चलेगी ये लड़ाई। फिर नज़र घुमा कर देखा तो सारे चेहरे वैसे ही दिखाई दिए। सभी थके हारे लग रहे थे। यहाँ तक कि हमारा साइकिल-मैन,चाय वाला अन्ना भी।
रात के ये चाय बेचने वाले मुंबई की नाइट लाइफ (रात की जिंदगी) का अहम हिस्सा हैं। रात पाली (नाइट शिफ़्ट) में काम करने वाले, पब, पुलिसकर्मियों, रात के पहरेदारों (वॉचमन) और यहां तक कि असामाजिक तत्वों के लिए भी ये साइकिल-बद्ध व्यवसायी, रात के योद्धाओं (नाइट वॉरियर) की तरह लगते हैं। इस तरह इनके कुछ वफादार ग्राहक भी बन जाते है। पर इनका जीवन आसान नहीं। अचानक कोई कड़क वर्दीवाला आ जाए तो इनका धंधा बंद या फिर कानून के रखवालो के द्वारा पकड़ा जाना और जुर्माना देना होगा, जो कि उनके द्वारा प्रतिदिन की कमाई जाने वाली राशि का तीन गुना होगा।
पर यह क्या मै तो यहाँ एक कप चाय की तलाश में, आया था, पर किन खयालो में खो गया? इतनी देर रात को इस विषय पर निबंध लिखने से अच्छा मै जल्दी से अपने दोस्त के घर सुरक्षित पहुँचाना चाहता था। नहीं तो मेरी रात भी साइकिल-मैन अन्ना की तरह हो जायेगी। खैर मेरी चाय ख़त्म हो गई और मै पैसा देकर चुपचाप निकल गया।
दिनेश कुमार सिंह