संघर्ष करो
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संघर्ष करो
संघर्ष करो संघर्ष करो, जीवन यूँ ना व्यर्थ करो |
उठो अब फिर पुरुषार्थ करो, जीवन यह कृतार्थ करो |
रग रग में फिर स्फूर्ति भरो, उद्देश्यों की पूर्ति करो|
संघर्ष करो संघर्ष करो , जीवन यूँ ना व्यर्थ करो |
माना फिर एक हार हुई, आशा फिर लाचार हुई |
नौका फिर ना पार हुई, फिर फसल पतवार हुई|
जीवन में दुःख को आना है, इससे नाता तो पुराना,
फिर भाग कर दूर क्यों जाना है? इसे भी गले लगाना है|
यह तो जीवन का क्रम है, सदैव असफलता ही मिले, यह मात्र के भ्रम है|
क्या सूर्य को ना फिर आना है? क्या रात्रि को ना फिर जाना है?
क्या कोई इससे अनजाना है? इस सत्य को सहर्ष अपनाना है|
साहस को फिर एकत्र करो, मन को फिर सशस्त्र करो|
यह जीवन की श्रृंखला है, असफलता को अन्यत्र करो|
संघर्ष करो संघर्ष करो, जीवन यूँ ना व्यर्थ करो |
तुम एक अंश हो राघव के, अक्षांश हो तुम माधव के|
फिर भय किस बात का है? सब खेल तुम्हारे हाथ का है|
उठो फिर जीवन में एक हर्ष भरो, संघर्ष करो संघर्ष करो,
जीवन यूँ ना व्यर्थ करो | जीवन यूँ ना व्यर्थ करो |
रचयिता
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”
Very positive and inspiring !!
बहुतही प्रेरणा देने वाली, वास्तव जीवन का सामना करने उद्युक्त करनेवाली कविता.
बहुतही सुंदर! 🙏🙏