परमात्मा सदैव हैं साथ।
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|| श्री सद्गुरवे नमः ||
परमात्मा सदैव हैं साथ।
प्रश्न – हे गुरुदेव ! साधना के मार्ग पर चलते हुए हम धर्मपथ से, कर्तव्यपथ से च्युत न हों और मन सदैव स्थिर, शांत रहे, इसके लिए क्या करणीय है, कृपया मार्गदर्शन करें |
सद्गुरुदेव उवाच –
हमलोगों को हरदम यह सोचना चाहिए कि हम किसी के एनर्जी फील्ड में नहीं आयेंगे | देखो, प्रत्येक आदमी, प्रत्येक जगह से एक एनर्जी निकल रही है | तुम साधना करके अपने को इतना समझो कि ‘आई एम अ सुपरसोल’ (I am a Super Soul) | मैं एक महान आत्मा हूँ और कोई बुरी आत्मा मेरे नजदीक आ जाएगी, गाली दे देगी, हड़का देगी तो उसका एनर्जी फील्ड हमपर काम नहीं करेगा | हम उसके एनर्जी फील्ड में नहीं जायेंगे |
महारानी कैकेयी जैसी तेज़-तर्रार औरत, मंथरा के एनर्जी फील्ड में चली गई | हम कैसे किसी के एनर्जी फील्ड में चले जाते हैं ? कोई आदमी चोर है, गुण्डा है, बदमाश है- यदि उसके एनर्जी फील्ड में चले गए, उसकी एनर्जी को स्वीकार कर लिया तो कुछ नहीं कर पाओगे – बिगड़ जाओगे | जैसे तेज़-तर्रार, सुन्दर, विद्वान् होते हुए भी कैकेयी बिगड़ गई |
तुम अपने अन्दर गुरुमंत्र जो दिया गया है, उसका स्मरण करते रहो | और यदि गुरुमंत्र नहीं लिया है तो अंदर-अन्दर हरदम इस मन्त्र का स्मरण करते रहो कि ‘आई एम अ सुपरसोल’ | उसका भी प्रभाव यही पड़ता है क्योंकि ‘सोल (Soul) तो हरदम सुपर होता है’ | जब तुम यह स्मरण करते रहोगे तब तुम किसी नेगेटिव आदमी के ऊर्जा-क्षेत्र में नहीं जाओगे, उसकी नेगेटिविटी के क्षेत्र में नहीं जाओगे | कोई कुकर्म नहीं करोगे, बच जाओगे | इसलिए अपने को बुरे आदमियों के एनर्जी फील्ड से बचाना चाहिए | हम शराब पीने लगेंगे | कोई शराबी है, मैं उसके नजदीक जाकर बैठ गया, पीने लगा | पूछोगे कैसे ?
देखो भारत में पण्डितराज जगन्नाथ मिश्र- बहुत बड़े कवि और महात्मा हुए हैं | अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में कहा कि इसको गिराया जाए, लेकिन कैसे ? जब कोई शक्ति काम नहीं आई, मुसलमान लोगों ने मिलकर मीटिंग की काशी में | कहा कि इसके चारों तरफ सुरा-सुन्दरी को बैठा दिया जाए | नर्तकियों का नाच हो, शराब पीओ, हाहा-हाहा मजाक करो | जगन्नाथ पण्डित के चारों ओर इस तरह का एनर्जी फील्ड क्रिएट कर दिया गया कि इसको ख़त्म करो | शराब का, वैश्याओं की एनर्जी को इनमें प्रवेश कराओ | यह देखो प्रैक्टिकल हुआ है और तब वो काशी में अस्सी घाट पर जाकर बैठ गए हैं | ‘गंगा लहरी’ वही बनाए हैं | एक बार एक लहरी, श्लोक बनाए तो गंगा एक पग बढ़ गई | इस तरह से वह अस्सी श्लोक बनाए और अंतिम श्लोक पर जल गंगा के उच्चतम शिखर पर पहुँचा, तब माँ गंगा उनको हिलोरा दी और लेकर अपने में डुबा दी | चली गई | इसलिए मैं कहता हूँ कि गंगा नदी नहीं है, देवी है | बस तुम्हारी श्रद्धा की ज़रूरत है | वही गंगा-लहरी तुमलोग गाते हो | और देखो गंगा मैया उनको लेकर चल दी | अपने में विलीन कर ली | जगन्नाथ पण्डित जल समाधि ले लिए |
हमलोग जाने-अनजाने कहते हैं कि हमारे बड़े साहब आ गए हैं, बड़े नेता आ गए हैं, फलाना आ गया है, क्या करें ! चलो काम कराना है तो उनके गलत काम में मदद देते हैं, सुरा-सुन्दरी में समर्पण कर देते हैं | माने तुम उनके एनर्जी फील्ड में चले गए- तुम्हारा बुरा समय शुरू हो गया | इसलिए हर समय बुरे लोगों के एनर्जी फील्ड से बचो | अपने घर में मत जाने दो बुराई को | हमलोग पहले साधु-महात्माओं को अपने घर में ले जाते थे | साधु-महात्माओं का एनर्जी फील्ड 28,000 से लेकर 32,000 मेगावाट होता है और तुम्हारे घर में 650 से 750 मेगावाट एनर्जी होती है | साधु-महात्मा जब तुम्हारे घर में जाते हैं तो वह चार्ज हो जाता है | और चार्ज हो जाता है तो नेगेटिविटी निकल जाती है, अब तुम वहाँ आराम से निवास कर सकते हो | इसीलिए मंदिर में, आश्रम में जाना चाहिए | वहाँ का एनर्जी फील्ड ज्यादा होता है | तुम डिस्चार्ज हो जाते हो, वहाँ चार्ज हो जाओगे | हमारे भारत के ऋषियों की यह खोज है – मंदिर बनाने, आश्रम बनाने का कांसेप्ट | इसलिए जाने और अनजाने कहीं मंदिर पड़ता है, चले जाओ | दस रुपया चढ़ा दो | हाथ जोड़कर प्रणाम कर लो | देखोगे कि तुम चार्ज हो गए, अनजाने में ही | क्योंकि वहाँ का तो निर्माण ही ऐसा है | मंदिर में कोई शराब तो नहीं पीएगा न ! कोई श्री राम जय राम बोल रहा है, कोई पाठ कर रहा है | हवन-पूजन हो रहा है | वहाँ एनर्जी फील्ड क्रिएट हो रहा है | तुम जाओगे और अनायास ही चार्ज हो जाओगे |
तुम कहोगे कि क्यों हम जाएँ पत्थर के मंदिर ? अरे वहाँ का अपना एनर्जी फील्ड है | जैसे बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है तो उसको चार्ज कराया जाता है, उसी तरह से तुमको भी चार्ज करने के लिए जगह-जगह मंदिर बनाने की, भारत के ऋषियों ने यह व्यवस्था दी है | थोड़ी-थोड़ी दूर पर मंदिर बना है कि जाओ, दस रुपया भी मत चढ़ाओ | बस झुककर प्रणाम करो, तुम चार्ज हो जाओगे |
भगवान् कृष्ण भी गीता में कहे हैं – ‘देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं’ (अध्याय 17 श्लोक 14) अर्थात् देव, द्विज, गुरु और ज्ञानी जहाँ मिल जाए, उसे प्रणाम करो, पूजो | जाने अनजाने तुम ज्ञान को प्राप्त हो जाओगे | जो द्विज है, दोबारा जन्म हो गया है, साधना कर रहा है, उसे झुको और प्रणाम करो | देखो तुम चार्ज हो जाओगे | हो सकता है उसमें दीपक जल रहा हो, तुम्हारा भी दीपक जल जाएगा | और जो प्रज्ञा को प्राप्त हो गया है, वह मिल गया तो कुछ मत करो, जाओ प्रणाम करो | हो सकता है उसकी प्रज्ञा तुममें ट्रान्सफर हो जाए और तुम भी प्रज्ञा को प्राप्त हो जाओ | और गुरु किसी का हो, किसी पंथ से, संप्रदाय से हो – इससे हमें लेन-देन, कोई मतलब नहीं है | वह गुरु है, बहुत लोग झुकते हैं, उसमें एनर्जी फील्ड क्रिएटेड है | हम भी गए, जाकर झुक गए, बैठ गए | उसका गुरुत्व हममें आ गया | अनायास ही हम चार्ज हो गए | भगवान् कृष्ण भी इसमें यह तकनीक दिए हैं | इसीलिए यत्र-तत्र हमारे यहाँ अपने को रिचार्ज करने के लिए यह विधि-विधान बनाया गया है |
भारत में, देहात में लोग लालटेन जलाते हैं और जब भी बूढ़ी माता जलाती है, जलाकर ले आती है, पूरा घर उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करता है | कहते हो यह क्या पागलपन है ! अरे इसमें मिट्टी का तेल है | उसमें भी मिलावट है, कण्ट्रोल वाला है, पानी मिलाया गया है | उसको प्रणाम कर रहे हो ? यह नहीं बात है, हम शाम को देख रहे हैं कि माँ जलाकर लाई और हम प्रणाम कर दिए तो हमारा जो टेंशन है, वह रिलीज़ हो गया और हम टेंशन-फ्री हो गए | पुनः चार्ज हो गए | यह विधि बताई गयी है भारत में | तुम जा रहे हो रास्ते में पीपल का पेड़ आया, झुक जाओ प्रणाम कर लो | दिक्कत है ? आदमी की इतनी टेंशन है, इतनी समस्याएं हैं कि पीपल के पेड़ के सामने झुक गया, अन्दर का टेंशन रिलीज़ हो गया | देखो गाड़ी में शॉक एबसॉर्बर क्यों दिए जाते हैं ? सड़क ख़राब है, जगह-जगह उछलती है, शॉक एबसॉर्बर वह पी जाता है, तुम्हारी गाड़ी चलती रहती है | उसी तरह से भारतीय मनीषियों द्वारा यह शॉक एबसॉर्बर बनाए गए हैं, जगह-जगह तुम प्रणाम करते हो और सारा टेंशन रिलीज़ हो जाता है | और जब टेंशन रिलीज़ हो जाएगा, तुम्हारा जीवन लम्बा हो जाएगा | अब वैज्ञानिकों ने शोध किया तो कहा कि गज़ब ! हिन्दू लोग जाते हैं, देखते हैं कि गंगाजी से ट्रेन जा रही है तो झुक कर प्रणाम कर देते हैं, कुछ सिक्के डाल देते हैं | कहोगे कि यह तो बड़ा पागल है रे ! नदिया को प्रणाम कर रहा है ! नहीं, कोई न कोई बात को लेकर यह टेंशन में है, यह झुका है, प्रणाम किया है और झुकने से टेंशन रिलीज़ हो जाता है | टेंशन मुक्त होने की यह अद्भुत कला है |
तुम कहोगे कि यह तो बड़ा बैकवर्ड है ! अरे वह बैकवर्ड है या नहीं, छोड़ दो बात, लेकिन आजकल इतना टेंशन है घर में, परिवार में, समाज में कि आदमी पागल हो जाएगा | अब विदेश के लोग खोज रहे हैं कि ये लोग तो जगह-जगह मंदिर बनाकर टेंशन से मुक्त हो रहे हैं | अरे एक गाय जा रही है आवारा, हिन्दुओं में गाय के प्रति इतनी श्रद्धा है कि कहीं गाय देखते हैं, झुककर प्रणाम करते हैं | कहा जाता है कि यह गाय तो लोफर है यार, कुछ दूध-वूध नहीं देती है | लेकिन हम कहते हैं कि लोफर हो तो भी हमको कोई मतलब नहीं है | हम प्रणाम कर लिए | और जब तुम प्रणाम कर लोगे, परमात्मा, प्रकृति तुम्हें आशीर्वाद देगी, तुम टेंशन फ्री हो जाओगे और तुम्हारी उम्र बढ़ जाएगी |
शांत रहना हमारा स्वभाव है, अपने सहज स्वभाव में लौटें
आपलोग अपने में यह सोचो, ऐसा विधान क्यों बनाया गया है ? इसलिए कि बार-बार हम अपने सहज स्वभाव में लौटें | जब हम सोचेंगे कि किसी के एनर्जी फील्ड में नहीं जायेंगे तो अपने ही एनर्जी फील्ड में रहना होगा न ! देखा होगा, सुनामी-साइक्लोन आ गया, खूब तेज़ आंधी-तूफान आया, पेड़ के पेड़ गिर गए, घर के घर गिरा दिए गए लेकिन तुम देखोगे कि कुछ दिन में सुनामी-तूफान रुक गया और वातावरण शांत हो गया | यह प्रकृति का स्वभाव है- शांत हो जाना | हममें भी आता है तूफान – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से एकदम भर जाते हैं कि हम फलाना को मार देंगे, फलाना का यह बिगाड़ देंगे | लेकिन कुछ देर श्वास को कण्ट्रोल कर लो- रोक दो | जब तूफान आता है तो आंधी तेज़ चलती है | काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि वासना जब आती है तो समझ लो कि यह आकाशीय है, तुममें स्थायी नहीं है | यह आकाश से आ गया है | तुम अपने श्वास को रोक लो | थोड़ी देर श्वास पर ध्यान दो, नियंत्रण कर लो | वह सुनामी-तूफान टल जाएगा और जैसे सुनामी के बाद सब शांत हो जाता है, तुम भी शांत हो जाओगे | क्योंकि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ – तुम्हारा स्वभाव नहीं है | तुम्हारा स्वभाव है शांत होना | इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि विषम परिस्थिति में भी अपने स्वभाव में लौट आएँ | जब तुम अपने स्वभाव में लौट आओगे, खतरे से बच जाओगे |
हमलोग अपने स्वभाव में नहीं लौटते हैं | रात-रात भर नींद नहीं आती है, स्लीपिंग पिल्स खाते हैं | उसका भी असर नहीं पड़ता है | अपने स्वभाव में लौटते नहीं हैं | हमें प्रकृति से सीखना चाहिए, अपने स्वभाव में लौट आना चाहिए | क्योंकि हमारा स्वभाव कामी, क्रोधी, लोभी होना नहीं है | यह आकाश तत्त्व से आता है | और क्षण भर में जैसे कोई चोर आया, ड्राइंग रूम में सामान तोड़-ताड़ करके लेकर भाग गया, उसी तरह से काम-क्रोध क्षण भर के लिए आकाश तत्त्व से आता है और तुम्हारे अन्दर प्रवेश करता है और सब तोड़-ताड़ कर भाग जाता है | तुम फिर पश्चाताप करते हो कि यह कहाँ से आ गया ? अरे कहाँ से आ गया, यह तो आ ही जाता है आकाश से | चोर है | आकाश में रहता है बाहर, तुम्हारे अन्दर नहीं रहता है | इसको आने ही क्यों देते हो ?
सच्ची भक्ति क्या है ? हनुमानजी के स्वरूप को जानने और उसका अनुकरण करने से होगी सच्ची भक्ति –
हमलोग हनुमानजी के मंदिर में जाते हैं, हनुमानजी को इतना बड़ा मूंज पहनाया जाता है, क्यों ? देखो, यह मूँज और कुछ नहीं, साहस का, हिम्मत का प्रतीक है | तुम भी मूंज देखादेखी पहनकर निकल जाओ – कोई एक आदमी ललकारेगा तो दस कदम भागोगे पीछे | फिर तुम मूँज लपेट लो या रस्सी, क्या अंतर पड़ता है ! यह साहस का, सौम्यता का प्रतीक है | विपरीत परिस्थिति में भी शांत, सौम्य रहने का प्रतीक है | हनुमानजी के सामने कितनी विपरीत परिस्थितियाँ आई, लेकिन ये शांत हैं | दूसरा- यह मस्तिष्क पर नियंत्रण रखने का प्रतीक है | जब तुम शांत रहोगे तब न मस्तिष्क पर नियंत्रण रखोगे ?
हनुमानजी को जो पूँछ दी गई है, इस बात का प्रतीक है कि तुम्हारे रूप से हमको मतलब नहीं है | तुममें पौरुष होना चाहिए, हिम्मत और साहस होना चाहिए | जैसा भी तुम्हारा रूप हो, चाहे तुम कुरूप भी हो; यदि तुममें पौरुष है तो तुम संसार का अदम्य काम कर सकते हो | राम के काम आ सकते हो | विश्व के काम आ सकते हो और अपने पौरुष से भारत का नक्शा बदल सकते हो |
तुमलोग देखते हो कि ये पैर में खड़ाऊँ लगाए हैं | खड़ाऊँ प्रतीक हैं – आत्मशक्ति की, आत्मचिंतन की | किसी वैश्या के पैर में खड़ाऊँ नहीं देखोगे | देखा है ! हरदम देखोगे कि खड़ाऊँ कोई बाबा पहना है | इसका मतलब वह व्यक्ति आत्मचिंतन में है | वह निरंतर आत्म-अन्वेषण में है | इसलिए हनुमानजी के पैर में जो खड़ाऊँ है, वह आत्मचिंतन, आत्मशक्ति की प्रतीक है | आत्मान्वेषण, आत्मविश्वास और समरसता की प्रतीक है | माने यह व्यक्ति समरस है | इससे हम उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि समाज में वह द्वेष फैलाएगा |
हनुमानजी हाथ में जो पर्वत लिए हैं, इसका मतलब ? ये कहते हैं, ‘राम कीजै बिना मोहे कहाँ विश्राम |’ संसार का जो भी काम है, नौकरी में, चाकरी में या समाज में कोई स्वयंसेवी संस्था, यह समझो कि हम राम का काम कर रहे हैं और जब तक हम राम की सेवा नहीं करते हैं, मुझे विश्राम करने का हक़ नहीं है | इनके हाथ में जो पर्वत है, वह राम के काज का प्रतीक है, जनता की सेवा का प्रतीक | हमलोग इन प्रतीकों को नहीं जानते हैं | बस मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति रख लेते हैं, पूजा-पाठ कर लेते हैं | जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं |
यदि तुममें यह आत्मविश्वास रहे कि भगवान् जब हमारे साथ है तो कोई क्या बिगाड़ लेगा, तो फिर दुनिया में तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है | तुम्हारा विश्वास अडिग होना चाहिए | विश्वास से, श्रद्धा से ही तुम गोबर का गणेश बना लेते हो, मिट्टी का महादेव बना लेते हो और पत्थर का परमात्मा बना लेते हो | यदि तुम्हें उसपर विश्वास है, तो वह हरदम तुम्हारे साथ है |
सदगुरु टाइम्स से साभार
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –
Jai gurudev